"कीचड़ में कमल"
"कीचड़ में कमल"
कीचड़ तो बड़ा अच्छा फेंक लेते हो,
आप कभी उसमें कमल भी उगाकर देखो,आप
दूसरों में क्या कमियां निकालते हो,साहब
कभी खुद की भी कमियां बताओ,सरेआम
भूल जाओगे फिर तो परनिंदा करना,आप
जो करे,परनिंदा वो पाए खुदा का अज़ाब
खुद में चाहे कमियों के छिपे हो,कई पहाड़
पर लोग अपनी नही,पर कमियां रखते,याद
आज उजाले से ज्यादा अँधेरे हुए आजाद
इस कारण उजाले हुए,आज ज्यादा बर्बाद
आजकल गुलाम हुए,खुद के ही इंकलाब
जिस कारण मिट रहा,खुशियों का आह्लाद
जिसे अपनी कमियां दूर करने में आये,लाज
वो व्यक्ति खुद का बोझ ढोनेवाले,गर्दभ आज
जो अच्छाई रोशनी से जलाता,खुद को,आज
वही बनता है,यहां पर कोहिनूर हीरा नायाब
जो अपनी कमियां निकालने का जानता,राज
ओर निंदा साबुन खुद को से करे रोज साफ
वही व्यक्ति बन सकता,शूलों के बीच गुलाब
उसके नींदों में क्या,सच मे पूरे होते है,ख्वाब
जिसे दूसरों पर नही,खुद पर होता विश्वास
वह व्यक्ति बनता फ़लक को छूनेवाला,बाज
कोई भी बिना मतलब के कीचड़ फेंके खराब
उसी कीचड़ में उगा दो कमल फूलों के बाग।
