रंग बदलते अपने भाग-२
रंग बदलते अपने भाग-२
ये तो बहन सहेली और न जाने क्या
बनाई थी मैंने खुद से अजीज ज्यादा
साथ में रहने आई थी मेरे और रही भी
जाते जाते इतना किया कि मैं टूट गई।
मना किया मैंने कि लाना मत किसी को
पर भाई बड़े थे मैं बात टाल नहीं थी पाई
चुपचाप रही थी मैं कुछ कह न सकी थी
कमरे में रहने को मेरे एक अंजान थी आई।
कंप्यूटर करवाया साथ में नौकरी भी दिलाई
गरीब घर से थी वो मुझे उस पर दया थी आई
पर वो न जाने किस जन्म का बदला लिए थी
और पूरे शहर में उसने मुझे नीचता दिखाई।
जैसे तैसे संभालती उसे समझाती थी लेकिन
उसने ठाना था कि कुछ अलग ही करेगी वो
अपनी आदत व हरकतें ऐसे बदली थी उसने
रात रात गलियों में ढूंढने को भगाती थी जो।
