ग़ज़ल
ग़ज़ल
आपके बिन मुकम्मल कहानी नहीं
तू नहीं तो मेरी जिंदगानी नहीं
शेर लिखता रहा मैं यही सोचकर
अब ग़ज़ल से बड़ी भी निशानी नहीं
काम जो भी न आई वतन के कभी
वो नजर मैं हमारी जवानी नहीं
वो मुहब्बत यहाँ कब मुकम्मल हुईं
जो मुहब्बत मिरि जा रूहानी नहीं
इस जहाँ में कोई श्याम भी तो नहीं
इसलिए कोई मीरा दीवानी नहीं
फूल घर में खुशी के कैसे खिले
घर के गमलों में जब रात रानी नहीं
प्यार ही तो ग़ज़ल हैं ग़ज़ल प्यार है
नफरतों की धरम की रवानी नहीं।
