अमृत पीते सवाल
अमृत पीते सवाल
क्या सवाल अमृत पीकर आये हैं?
क्योंकि वे कभी मरते नहीं हैं
सदियों से दर्ज रहते हैं वे इतिहास के पन्नों पर
भूगोल के दायरों को पार करके जब तब सामने आकर खड़े हो जाते हैं
उनकी वह ख़ामोशी सायं सायं करती है
नजरअंदाज करने की मेरी हिम्मत पर
वह आँख से आँख मिलाने की जुर्रत करते हैं
पहले वाला सवाल बूत बन कर खड़ा नहीं रहता
बल्कि वह दूसरे सवालों को झट आगे कर देता है
दूसरे सवाल पहले सवाल से ज्यादा धार वाले होते हैं
मैं फिर से नजरें चुराने की कोशिश करता हूँ खुद से और दुनिया से
एक दायरा बनाकर वे मुझे घेर कर मेरे आगे गोल गोल घूमते हैं
जैसे तैसे मै उनसे बच कर भाग आता हूँ
छुप जाता हूँ अपने घर के किसी कोने में
लेकिन सवाल तो सवाल होते हैं
वह मेरा पीछा कहाँ छोड़ते है?
मैं सवालों की भीड़ में खो जाता हूँ
ऐसा नहीं कि सवाल के जवाब नहीं होते
हर सवाल का जवाब होता है
लेकिन कुछ सवाल के जवाब दिए नहीं जाते
जैसे वह कोई नाज़ायज औलाद हो
जिनके वजूद को हम छिपाना चाहते हैं
औऱ दिन के उजाले में उनसे बचना चाहते हैं
लेकिन वे भी अब जाग गए हैं
अब वे अपना हक़ माँगने लगे हैं
जब तब वह हमले करने लगे हैं
शहर-शहर और गावँ-गावँ हर मोहल्ला हर कसबा
सब तरफ सवाल अब गूँजने लगे हैं
कभी मन के भीतर तो कभी मन के बाहर उबलते हैं
जब औरत देवी हैं फिर समाज में वारांगनाएँ मौजूद कैसे?
नवरात्रों की अष्टमी में कन्यापूजन और साल भर भ्रूणहत्या कैसे?
कण कण में भगवान फिर यह छुआछूत कैसे?
हर जीव भगवान ने बनाया है फिर किन्नरों से तिरस्कार कैसे?
बेटा-बेटी एक सामान फिर बेटी परायी अमानत कैसे
सवाल अब दबंगई करने लगते हैं
और जवाब सिहरकर छुप जाते हैं
अगर कोई सवाल सर उठाता है तो उन्हें धमकाया जाता है
उनको बर्बरता से कुचला जाता है
इतिहास के पन्नों पर किसी कोने में उनको दर्ज किया जाता है
और वे किसी जिद्दी बच्चे की तरह भूगोल के दायरों से बाहर निकल आते हैं
वे अपना रंगरूप भी बदल देते हैं
छुआछूत से अब वे नस्लभेदी वाले सवाल बन जाते हैं
सही में सवाल अमृत पीकर आये हैं
क्योंकि वे कभी मरते नहीं है.......