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Deepa Joshi Dhawan

Drama

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Deepa Joshi Dhawan

Drama

लोग क्या कहेंगे

लोग क्या कहेंगे

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बचपन में माँ कहा करती थी

लड़की हो, लड़कियों की तरह रहो

ये साइकिल चलाना, पतंग उड़ाना

सड़क पर क्रिकेट खेलना

लड़कों का काम है

लोग क्या कहेंगे


बड़ा भाई कहा करता था

कुछ ज्यादा ही हँसती हो

तुम क्या करती रहती हो

यूँ न हँसा करो सड़क पर


सब तुम्हें ही देख रहे हैं

कैसी लड़की हो

लोग क्या कहेंगे


घर से दूर निकली तो

समझा कर भेजा गया

लड़के अलग होते है

उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता


पर तुम एक लड़की हो

कायदों की हद में रहना ही 

तुम्हारी ज़िन्दगी का सच है

कुछ उल्टा सीधा हुआ तो

 लोग क्या कहेंगे


जब शादी हुई तो पता चला

अब मैं एक बहू बन गयी हूँ

बहू मतलब घर की लाज

बहू का धर्म, परिवार की

परम्पराओं का निर्वाह


हंसी मज़ाक मायके में

लड़कियों को शोभा देता है

ससुराल में ये नहीं चलता

लोग क्या कहेंगे


पति के सब रिश्तेदार

उनके मित्रों के परिवार

अब मेरा परिवार हो गए

उनसे निर्वाह मेरा धर्म

मेरी नियति, मेरा कर्म


जब अपने लिये कुछ सोचा

हैरानी भरा जवाब मिला

आखिर करना क्या चाहती हो

शादीशुदा हो अब तुम

लोग क्या कहेंगे


बच्चों के आने पर पता चला

उन्हें पालना माँ का काम है

ममता स्वयं पर हावी हुई 

साल दर साल निकल गए

मेरी गोदी में खेले बच्चे 


मुझे हाथ पकड़ कर 

सड़क पार कराने लगे

कभी जो खुल कर हँसी तो 

धीमे से पास आ बोले

माँ क्या करती हो 

लोग क्या कहेंगे


आखिर कौन हैं वो लोग

किस जगह रहा करते हैं

अपने घर बार को छोड़

हमारे बारे में क्या कहते हैं


बचपन से उम्र की ढलान तक

ये कैसी अजीब ज़िन्दगी है

लोगों के हिसाब से जीना

क्यों नारी की नियति है


आखिर कौन हूँ मैं और क्या

सच में मेरी कोई हस्ती है

धन वैभव रूपी माँ लक्ष्मी

विद्या रूपी माँ सरस्वती


और शक्ति रूपेण माँ दुर्गा

जब सब रूपों में स्थापित हूँ

मैं एक आराध्या बनकर और

यही लोग मांगते हैं मुझसे

वरदान सफल होने का


और उन्ही लोगों के लिए

इस सृष्टि का सृजन

संभव ही नहीं मेरे बिना

फिर स्वयं के जीवन में


दिशा निर्देशों में क्यों हर पल

सोचना चाहिए मुझे कि ये

लोग क्या कहेंगे।


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