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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

ब्राह्मण

ब्राह्मण

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सबको ही देता है, वो शुभाशीष

ब्राह्मण तो है, शान्तचित्त मनीष

जलाता है, वो नित ही ज्ञान दीप

रोज श्री हरि बोले, उसकी जीभ


सर पर शिखा, गले मे है, जनेऊ

ब्राह्मण सादगी का है, प्रतीक

सत्य पथ पर रहता है, अडिग

ब्राह्मण ने ज्ञान को बताया, मीत


स्वभाव से है, बहुत ही विनीत

पर जो चलाये, अधर्म की रीत

ब्राह्मण बन जाता है, परशुराम

अधर्म का मिटाता है, वो बीज


ब्राह्मण कोई जाति नही है,

वर्तमान से क्या करूँ उम्मीद

सब बंटे हुए कई, जातियों में

कोई न कर रहा, धर्म से प्रीत


वाल्मीकि हो, या वो विश्वामित्र

सब ज्ञान से बने, ब्राह्मण बीज

पर वर्तमान में जातिवाद विष

डूबा रहा है, हमारा राष्ट्र गीत


सनातन धर्म हेतु, ब्राह्मणों ने

गंवाये कई बार प्राण, निज

ब्रह्म में जो करे, विचरण नित

वही कहलाता है, साखी द्विज


निर्वाह हेतु, मांग क्या ले, फीस

जैसे उनका घर, मांग लिया लीज

कुछ लोग इतने हुए है, दुष्ट गीत

ब्राह्मणों को गाली देते है, खींच


अरे मित्रों छोड़ो व्यर्थ की खींच

सबसे ही करो, आप तो प्रीत

सही अर्थों में वही है, ब्राह्मण

जो सबको माने, अंश जगदीश


जिसके भीतर जले, सत्य दीप

वह है, ब्राह्मण रूपी सनातन रीत

ब्राह्मण तो है, धर्म, प्रकाश, उम्मीद

जो बोले, सत्य की होगी, सदा जीत।


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