दोहा छंद
दोहा छंद
शयन किये शिशु साथ में, छोड़ चले मुख मोड़।
अंगीकृत कर क्यों मुझे, त्यागे कसमें तोड़।।
शपथ निभाया क्यों नहीं, करके अंगीकार।
बाधा समझा क्या मुझे, कहिए राजकुमार।।
कहकर जाते यदि मुझे, क्या बनती व्यवधान।
मनु शतरूपा तप कथा, नहीं आपको भान।।
निष्ठुर बन सकते पिता, छोड़ दिए अब हाथ।
लेकिन मैं हूँ एक माँ, कैसे छोड़ूँ साथ ।।
अमृतपान करता रहा, शिशु कैसे दूँ त्याग।
ममता कैसे छोड़ दूंँ, उठे हृदय में आग।।
वन में तप करते रहो, रहूँ पुत्र के साथ।
रहूँ महल में करूँ तप, अंतर क्या है नाथ।।
तप तो बस तप ही रहे, होगी प्रभु की भक्ति।
चाहे वन हो या भवन, देना तुम अब शक्ति।।
राहुल कल होगा बड़ा, होंगे सौ-सौ प्रश्न।
हारूँगी हर बार मैं, कैसे होंगे जश्न।।
प्रश्न सहज ये कौंधता, दूँ क्या उसे जवाब।
सोच-सोच कर हारती, तुमको मिले सबाब।।
जायें वन में तप करें, पूरी हो सब उक्त।
मिले आपको मुक्ति तो, होऊँ मैं भी मुक्त।।
मिले आपको या मुझे, रहे नहीं कुछ भेद।
कभी पुत्र को सौंपकर, रहूँ मुक्त मैं स्वेद।।
