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Navneet Goswamy

Abstract Drama Classics

4  

Navneet Goswamy

Abstract Drama Classics

साथी सफर के

साथी सफर के

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कारवां चलते गए 

एक एक कर, 

हम भी उसमें जुड़ते गए, 

भीड़ का हिस्सा बने 

तब से , खुद की हम कब सुने ?


साथी कितने भी हो साथ में,

मगर सब अकेले ही चले 

अपनी मंज़िलों की तलाश में ! 


राह में सबकी, इक दिन 

मोड़ वो आ जायेगा !

एक एक जैसे जुड़ा था,

बस उसी तरह, 

छोड़ कर वो जाएगा !


सफर जितना भी हो लिखा,

और जिसके संग हो लिखा 

आनंद रास्तों का लें गर 

सफर आसानी से कट जायेगा !


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