कुछ देर और
कुछ देर और
कुछ देर और सही
थोड़ी देर और रुक जा सोनिए,
की दिल अभी भरा नहीं।
मत जा ऐसे मुझे छोड़ के,
अपने प्रिय को ऐसे तड़पा के।
पड़ी रहो ऐसे ही आलिंगन में,
की भोर अभी हुआ नही।
खेलने दो मुझे अपनी इन जुल्फों से,
की रात अभी बाकी है।
ऐसी नादानियां बहुत याद आती है,
तेरी मेरी हर इक कहानियां हां बहुत याद आती है।
आज भी न होकर भी साथ हो मेरे,
रोज सपने में आकर अपने होने का एहसास जता जाते हो।
भोर होते ही मैं उठने की कोशिश करती हु,
पर तुम्हारी बाजुओं की जकड़ मुझे उठने नही देती।
उन मीठे पलो को मैं संजोकर रख लेती हूँ,
क्यूँकि वो हकीकत नही सपना है मेरा,
उस वक्त तुम मेरा हाथ पकड़ के कहते थे,
थोड़ी देर और रुक जा सोनिए।
अब मैं तुम्हे जाने नही देना चाहती,
सपनों की दुनिया से वापस अपनी दुनिया में लाना चाहती हूँ।
और मेरा दिल बार बार मन्नते करता,
और कहता तू कुछ देर और रुक जा सोनिए।
तू थोड़ी देर और रुक जा।