बेटी
बेटी
वह भी क्या सुनहरे दिन थे ,जब तूने जन्म लिया था।
नन्हे नन्हे हाथों को अपनी हथेली में छुपाया था,
बड़ा ही सुखद पल था वह,जब मां का सुख पाया था। मातृत्व का पहला एहसास था जागा ,
तेरी आंख खुलते ही झट सीने से था चिपकाया ।
लगी रोने जब आंचल में तुझे छुपाया,
बड़े ही मन्नत बाद सौगात है तेरा पाया ।
जैसे सूरज की पहली किरण जिंदगी में हो आया,
तेरी किलकारी से गूंजा था घर मेरा।
चिड़िया जैसी चहकती बेटी ,
हमारे घर का अभिमान बेटी ।
आन शान और मान बेटी ,
हमारे आंगन की रौनक बेटी।
त्याग और समर्पण की मूरत बेटी ,
दो कुल को संभालती बेटी।
कभी बेटी,कभी बहन,कभी मां,
हर रूप में अपना फर्ज निभाती बेटी।
फूलों की तरह खिलखिलाती बेटी,
जिस घर जाए चार चांद लगाए बेटी।
बेटी तो होती है मां की परछाई ,
फिर क्यों हर बेटी होती है पराई।