अनकही ख़्वाहिशें
अनकही ख़्वाहिशें
तेरी मोहब्बत की चढ़ी नीम सी खुमारी है
अपने सीने पर सिर रख थोड़ी देर सोने दो
जिस्म तो गुम हो चुका है ना जाने कब का
रूह को भी अब अपनेआप ही में खोने दो
ये तारों के हीरे-पन्ने, चांदनी के बिखरे मोती
बंधन की डोरियों में मुझे रात भर पिरोने दो
शिकवे शिकायतों के हैं कुछ दाग बड़े गहरे
वक़्त के तेज़ बह रहे दरिया में इन्हें धोने दो
हालातों की गर्म हवा ने दिल को जलाया है
सुकून की बारिश में इसे जी भर भिगोने दो
क्या पता उग ही जाएंगे फसल की मानिंद
दिल की इस ज़मीं में चंद जज़्बात बोने दो
नई नवेली उम्मीदों के पंख निकल आये हैं
घोंसले में इनको नए नरम कुछ बिछौने दो
उम्र बढ़ गयी मगर दिल अभी भी बच्चा है
ढूंढ कर कहीं से इसे फिर वही खिलौने दो
ये दिल भर गया है शायद मुस्कुरा कर मेरा
बस एक बार सिर्फ मुझे जी भर के रोने दो
मैं डूब तो चुकी हूँ तेरे इश्क़ के समुन्दर में
इसके आगे चाहे जो भी होगा उसे होने दो