बचपन में लौट जाते
बचपन में लौट जाते
धरा पे बैठ मिट्टी से, फिर आज घर बनाते।
उस चाँद को भी फिर से, चंदा मामा बुलाते।।
इन तल्ख रवायतों से, हम बचके बचाकर।
काश आज फिर से, बचपन में लौट जाते।।
नजरों से बचके माँ के, वो कंचे उछालना।
आँचल में बंधे माँ के, वो पैसे निकालना।।
ये थाम उंगली फिर से, पापा मेला घुमाते।
काश आज फिर से, बचपन में लौट जाते।।
धरा पे बैठ मिट्टी से, फिर आज घर बनाते।
उस चाँद को भी फिर से, चंदा मामा बुलाते।।
खेलने को ना मिले तो, सिसक सिसक के रोना।
वो जेठ की दुपहरी में, पीपल के नीचे सोना।।
होते ही शाम फिर से, उस तालाब में नहाते।
काश आज फिर से, बचपन में लौट जाते।।
धरा पे बैठ मिट्टी से, फिर आज घर बनाते।
उस चाँद को भी फिर से, चंदा मामा बुलाते।।
बरसात के आते ही, आँगन में पानी भरना।
कागज की कस्ती लेकर, फिर उसमें उतरना।।
आते बसन्त फिर से, कोयल को हम चिढ़ाते।
काश आज फिर से, बचपन में लौट जाते।।
धरा पे बैठ मिट्टी से, फिर आज घर बनाते।
उस चाँद को भी फिर से, चंदा मामा बुलाते।।
उजेली रात में छत से, निहारना उन तारों को।
माँगना मन्नत वो देख, टूटते सितारों को।।
आसमां में फिर से बाबा, वो ध्रुवतारा दिखाते।
काश आज फिर से, बचपन में लौट जाते।।
धरा पे बैठ मिट्टी से, फिर आज घर बनाते।
उस चाँद को भी फिर से, चंदा मामा बुलाते।।
स्कूल जाने के डर से, वो छुपना खलिहानों में।
एक अलग ही मजा था, उस वक्त के बहानों में।।
आज भी उन खलिहानो में, वक्त फिर से बिताते।
काश आज फिर से, बचपन में लौट जाते।।
धरा पे बैठ मिट्टी से, फिर आज घर बनाते।
उस चाँद को भी फिर से, चंदा मामा बुलाते।।
