देखो मैं मुश्कुरा रहा हूँ
देखो मैं मुश्कुरा रहा हूँ
हैं तूफाँ में गोते लगा रहा हूँ
लेकर उम्मीदों का साहिल,
अंजान लहरों से टकरा रहा हूँ,
जख्म तो अनगिनत हैं रूह पर
मगर, देखो मैं मुस्कुरा रहा हूँ।
तराशना भी खुद को आसां कहाँ
कैसे मन को देखो समझा रहा हूँ,
नींद ना आ जाए कहीं दरमियाँ
अपने घाव, खुद से दबा रहा हूँ,
अरबों के भीड़ में अकेला खड़ा हूँ,
मगर, देखो मैं मुस्कुरा रहा हूँ।
हिचकोले खा रही है जिंदगी
फिर भी संतुलन बना रहा हूँ,
वीरान ना लगे! ये सफर कहीं,
कई तरह से इसे सजा रहा हूँ,
उलझनों का पहाड़ है सामने
मगर, देखो मैं मुस्कुरा रहा हूँ।
राह चलते जो इतने तंज मिले
उनसे नई पंक्तियां बना रहा हूँ,
जुबाँ ये कहीं खामोश ना पड़े
बनाकर गीत उन्हें गुनगुना रहा हूँ,
नित नई तल्खियां नसीब हैं मेरे,
मगर, देखो मैं मुस्कुरा रहा हूँ।
