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पत्र जो लिखा पर कभी भेजा नहीं

पत्र जो लिखा पर कभी भेजा नहीं

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सुनो 

तुम्हें हमेशा शिकायत रहती थी न

कि मैं तुम्हारे लिए कुछ क्यों नहीं लिखती 

मैं हर कविता कहानीयों में उमड़ देती हूँ भावनाएं 


पर तुम्हारे लिए क्यों नहीं कुछ 

महसूस करती !

सुनो ऐसा नहीं है 

मैंने तुम्हारे लिए रोज एक खत लिखा था 

और रोज उसे जला दिया


इसलिए नहीं कि मैं डरती थी तुमसे 

या फिर जमाने से

मैंने कभी तुम्हें नहीं बताया 

कि मैं तुमसे कितना प्यार करती हूँ 


क्योंकि मैं अपने इस पावन रिश्ते को तौलने

नहीं देना चाहती थी किसी को भी

आज भी एक खत लिखा है मैंने 

पर भेजूंगी नहीं 


क्योंकि प्यार बताने की नहीं एहसासों 

की ओस होती है जिसे 

दो जिस्म ए जान ही समझ सकते हैं

जैसे मैं और तुम !


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