STORYMIRROR

Ruby Prasad

Abstract

3  

Ruby Prasad

Abstract

हत्यारे

हत्यारे

1 min
334

सुन

ए जिन्दगी

तुझ पर मैं कहानी न किताब लिखूंगी,

न ही तुजे माहताब लिखूँगी !


बस जितने जख्म दिये है न तुने

गिनगिन कर उनका हिसाब लिखूंगी !

है हिम्मत तो पढ़ लेना

तुझे मैं अपनी हर एक ख्वाहिश का,

कभी हत्यारा तो कभी गुनहगार लिखूँगी !


सुनकर खुद के लिए हत्यारे का

इल्जाम देख रो न देना तू

क्योंकि ये तो मैं बार बार लिखूँगी !


बड़ा गुरूर है न तुझे तुने दी है

मुझे चन्द सांसें !

तु तरस जाएगी पढ़ने को लफ्जों में मेरे ,

खुद के लिए मुहब्बत के चंद अल्फाजों को

सारा गुरूर टूट जाएगा तेरा जब,


फेर कर नजरें मैं तुझसे

दीवानों की तरह खुद को

मौत का तलबगार लिखूंगी !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract