हत्यारे
हत्यारे
सुन
ए जिन्दगी
तुझ पर मैं कहानी न किताब लिखूंगी,
न ही तुजे माहताब लिखूँगी !
बस जितने जख्म दिये है न तुने
गिनगिन कर उनका हिसाब लिखूंगी !
है हिम्मत तो पढ़ लेना
तुझे मैं अपनी हर एक ख्वाहिश का,
कभी हत्यारा तो कभी गुनहगार लिखूँगी !
सुनकर खुद के लिए हत्यारे का
इल्जाम देख रो न देना तू
क्योंकि ये तो मैं बार बार लिखूँगी !
बड़ा गुरूर है न तुझे तुने दी है
मुझे चन्द सांसें !
तु तरस जाएगी पढ़ने को लफ्जों में मेरे ,
खुद के लिए मुहब्बत के चंद अल्फाजों को
सारा गुरूर टूट जाएगा तेरा जब,
फेर कर नजरें मैं तुझसे
दीवानों की तरह खुद को
मौत का तलबगार लिखूंगी !
