मां तेरे रूप अनेक
मां तेरे रूप अनेक
वह नारी जो
गर्भ धारण करती है
अपने खून, मांस, मज्जा से
एक और शरीर तैयार करती है अपने शरीर से उसे
पोषित करती है
नौ महीने उपरांत
एक बच्चा जनती है
वह नारी जननी मां कहलाती है।
वह नारी जो
अपना दूध पिला
बच्चे को बड़ा करती है
बच्चे को सूखे में सुला
खुद गीले में सोती है
अपना सारा सुख,
चैन, समय, रातों की नींद
उस पर न्यौछावर
करती है
वह नारी धाई मां कहलाती है।
वह नारी जो
बच्चे की प्रथम
पाठशाला बनती है
खाना-पीना, चलना,
उठना-बैठना, बोलना
तहज़ीब व शिष्टाचार
न जाने क्या क्या सिखाती है
वह नारी गुरु मां कहलाती है।
वह भूमि जो
अनाज, हवा- पानी, सब्जी-फल से
शरीर का पालन करती है
देश प्रेम का पाठ पढ़ाती है
देश के लिए लड़ना सिखाती है
वह भूमि मां कहलाती है।
भाषा से ही संवाद संभव
भाषा से ही
भावनाओं का आदान प्रदान
भाषा से ही स्वर लहरियां उठती भाषा से गीत पनपते
भाषा से अभिव्यक्ति बनती
यही भाषा, मातृभाषा
यानी भाषा मां कहलाती है।
मां का एक और रूप
पूजनीय व सम्माननीय दैवीय रूप
जब जब समस्याएं डालें घेरा
हम उसकी शरण में जाते
आशीर्वाद पाने।
मां उनसे मुक्ति व
मन की शान्ति दिलाए
यही रूप हितैषी मां कहलाती है।
एक और रूप है मां का
जो अपने जीवन का
एक एक क्षण
अपनों पर लुटा कर
सबका ध्यान रखते रखते
हो चुकी अब बूढ़ी
जिसे आपके सहारे की दरकार है लाचार निगाहों से
आपकी प्रतीक्षा करती है।
यह है मां का निरीह सा रूप
जिसे है आपकी
सबसे अधिक ज़रूरत।
यही बूढ़ी, बूढ़ी मां कहलाती है।