"कद्र खुद की"
"कद्र खुद की"
कद्र करो, यहां तुम बस खुद की
भद्र रहो, जैसे होती कोई कौमुदी
ये दुनिया वाले तुम्हें क्या कहेंगे,
छोड़ भी दो, तुम फ़िक्र इसकी
रक्षा करो, तुम खुद के वजूद की
कद्र करो, यहां तुम बस खुद की
दुनिया तो भगवान से भी दुःखी है
तुम न सुनो बाते व्यर्थ, फिजूल की
वो काम करो, जो तुम्हें अच्छा लगे,
तुम्हें सौगंध, साखी खुद के मूल की
सब्र रखो, जब अपना वक्त बुरा हो
मत मानो बातें, व्यर्थ थुलथुल की
शांत रहो, धैर्य को बरकरार रखो
न करो भूल, कभी क्रोध करने की
बनो सदा तुम सागर कुमुदिनी,
न बनो, कभी नाले की बदबू
कोई लोभ दे, कोई प्रलोभन दे
नहीं छोड़ो, कभी खुद की बन्दगी
कद्र करो, यहां तुम बस खुद की
भद्र रहो, जैसे होती कोई कौमुदी
मत झुकना किसी के भी आगे,
लाज रखना, तुझे हिंद कुल की
तुझे बनना, गर रोशनी जुगनू की
मिटा दे, भीतर हस्ती तू झूठ की
छोड़ो आवाज करना, कुकूर की
आवाज रखो, साखी बुलबुल की
छोड़ो पशुता, अपने भीतर की
तुम जियो जिंदगी नम्र फूल की
कद्र करो, तुम यहां बस खुद की
मत बुझाओ लौ मासूमियत की
वो नजरें झुके, न शीशे सामने
जिनको कद्र होती है, खुद की
साखी कैसी हवा आजकल की
गैरों की कर रहे है, खुशामदगी
वो न हिलाते दुम, किसी कीमत पे
जिनकी आत्मा जिंदा है, आज भी
कद्र करो, यहां तुम बस खुद की
बाकी बहुत जीते, जिंदगी कुत्ते की।