इश्क़
इश्क़
खाते थे कभी साथ मरने-जीने की कसमें
वहीं रिश्ता आजकल मौत का फंदा हों गया हैं ।
होती थीं कभी हीर-रांझा सी भी रस्में
जिस्मफरोशी का अब धंधा हों गया हैं।
चुप-चुप के मिलने के भी कभी होते थे जश्ने
आजकल बेवफाई के नाम हर घर में दंगा हो गया हैं
रहते थे कभी पवित्र बंधन के भी चर्चे
आजकल इश्क़ अंधा कम गंदा ज्यादा हो गया है।