तुम क्या जानों
तुम क्या जानों
तुम क्या जानो
दुनिया के रंगो को
मनुज मन के दंगो को
कौनसा रंग किसके साथ मिलकर
अपना वजूद बदल लेता है
गिरगिट भी ना बदले
उतने मानव रंग बदल लेता है......
दिखता जो शांत मन सा नीर
गर्भ में उसके कौनसे तूफ़ाँ समायें है
क़ातिल हँसी में कितने राज जमायें है
क़दम-क़दम पर साज़िशों के पहरे हैं
ज़रा संभलकर चल..गड्ढे यहाँ बहुत गहरे हैं
किसने किसका चेहरा ओढ़ रखा हैं
दिलों में किसने धोखा सोच रखा है
ज़रा संभलकर चल.....
यहाँ के राज बहुत गहरे हैं ।