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Natwar Singh Dewal Official

Abstract

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Natwar Singh Dewal Official

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डर लगता है

डर लगता है

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उजालों में बसर रही ज़िंदगी मेरी 

अब अंधेरो से डर लगता है,


किताबों में लड़ती रही जवानी मेरी

अब बेरोज़गारी से डर लगता है,


तुमसे ही शुरू-ख़त्म कहानी मेरी

अब तुम्हें खोने से डर लगता है 


नादान मत बन रे, “राही” चलता जा....

तुम्हें देखकर ही तो साथ चलने का मन करता है,


मुझे अपने ही आशियां से डर लगता है,

मुझे अंधेरो से डर लगता है ।।



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