अपने-पराये
अपने-पराये
फटी जेब अपने भी इंकार करते हैं,
भरी हों जेब तो पराये भी साथ चलते हैं ।
क़दम-कदम पर धोखे यहां हजार मिलते हैं,
कामयाबी देख इंसान ही इंसान से जलते हैं ।
यूं तो दर्द में भी आहें भरा नहीं करते हैं,
पर जब चोट रूह खाये तो दिल भी जलते हैं।
कुछ परायों में अपने तो कुछ अपनो में पराये मिलते हैं,
जब जेहन में ज़हर बोये हो तो आम कहां फलते हैं ।
क्या करें 'देवल' कोई जब अपने ही अपनो को डसते हैं ।
दर्ज होते नहीं इतिहास में युद्ध जो मन के भीतर चलते हैं ।
