दिल
दिल
दिल में दरख़्त कटते जा रहे,
छाया मोहब्बत की मिले कहाँ ऐसे अब्र होंगे ।
एहसासों को कुचलते जा रहे,
नूर-ए-जहाँ में हुस्नवाले अब कहाँ वे बे-सब्र होंगे ।
खारे पानी के दरियाँ बहते जा रहे,
आँखों के अश्कों के भी अब कहाँ कब्र होंगे ।
रुखसत के दर्द तुम्हारे सहते रहे,
मिलेंगी अब ख़ुशी अब कहाँ इतने ज़ब्र होंगे ।।
