प्यार किससे करूं कोई जँचता नही
प्यार किससे करूं कोई जँचता नही
प्यार किससे करूं कोई जचता नहीं ,
बोझ जीवन लगे वक्त कटता नहीं।
कैसे हमदम जगत में बताऊं उसे ,
साथ चलने का हो जिसमे दम ही नहीं ।
दुख पडे जो कभी जिंदगी में अगर ,
साथ जो छोड़ दे हमसफर वह नहीं ।
वो सनम है भला कैसा किस काम का ,
आंख गम में मेरे जिसकी हो नम नहीं।
जिसको पाकर भी सन्तुष्ट हो ना सके ,
ज्ञानी जन उसको कहते है दिलवर नहीं।
छोडकर छल कपट त्याग कर स्वार्थ को ,
प्यार करता नजर कोई आता नहीं।
इस धरा को बनाकर के श्मशान हम ,
कह रहे है कि सुख हमको मिलता नहीं।
कर्म जैसे करो बैसा पाओगे फल ,
नीम के पेड पर आम फलते नहीं।
वासना पंक में डूबे आकण्ठ हम ,
प्रेम का है नया अर्थ हमने किया।
प्रेम की ही है चर्चाएं अब हर तरफ,
प्रेम कर लोग रोते हैं कम क्यों नहीं?