बुजुर्ग
बुजुर्ग
कुछ हैं सम्मान का अभाव
कुछ विचारों का टकराव
कुछ शक्ति खोता शरीर
कुछ आँखों का नीर
कुछ बदलाव से होता डर
क़भी पराया लगता घर
होता हैं क़भी जीवन भार
सूना लगता है संसार
कोई हमउम्र बने जो मित्र
बने सुख दुख का एक चित्र
हो जाते हैं फिर से मेले
जो ना रहे अब अकेले
क़भी संतान त्याग जो भूली
आश्रम की गलियां हैं खुली
तोड़ हृदय का दर्पण अब
बुज़ुर्ग बसे अब आश्रम।