गमों की रात
गमों की रात
उस रात
नींद को
मेरी आँखों से
रुसवाई थी,
यूं ही नहीं
मुझसे रूठी थी
दगा जो मैंने भी की थी,
आंसुओं को उसका स्थान
दे बैठी थी
ये सीख भी मैंने
उसके इश्क़ से पाई थी
हाँ, उस रात मैंने
करवटे बदल कर गुजारी थी
आंसुओं के साथ
आ जाती थी एक झलक
उनके बीच हुई बातों का
जो मेरे हृदय को चीरती
मृत-सा बना जाती थी
बारंबार मुझे चोट पहुँचाती
देख छवि उनकी
एक दूसरे के पास बैठी
झल्लाहट-से भर जाती थी
केवल वही रात
गमों की रात नहीं थी
कई रातें गमों में
गुजारा हैं मैंने
कई रातें नींद से
रही रुसवाई मेरी
फिर सोच में पड़ी मैं
क्या कमी रही मेरे प्रेम में
अथाह प्रेम किया जिससे
उसी ने रातों को
गमों में तब्दील किया
ये गमों की रातें भी
बड़ी बेअदब थीं
जो निरंतर
लंबी होती जा रही थीं
न जाने कौन-सी
शत्रुता निभा रही थीं
बस एक ही आशा थी
कब ढलेगी
ये गमों की रातें
और कब चढ़ेगा
खुशियों का एक सूरजमुखी प्रभात।
