अनमोल रत्न
अनमोल रत्न
है अनमोल रत्न प्रकृति जहान में
सुंदर– सुंदर प्रारूप है यहां पे
मंत्रमुग्ध कर देती
इसके अनोखे रूप
आकाश में बनते
अनेक कलाकृतियों का रूप
धरा पर देखते
सुंदर , अद्भुत गढ़े हुए स्वरूप
कभी माता बनकर
अपने गोद में सुलाती
कभी वृक्ष रूपी
आंचल की छाया बनकर
धूप, वर्षा से बचाती
कभी पक्षी रूपी गीत बनकर
मधुरम –मधुरम लोरी सुनाती
कभी पिता रूपी शाखा बनकर
बाल क्रीड़ाएं करवाती
जब –जब भुख लगती
अनेक भोज्य उपलब्ध करवाती
हरपल समझती
अपनी संतान सभी को
माता –पिता सामान
क्रोध भी दिखलाती
संतान को मनाने
ममतामय हवा की
एक झोंका चलाती
जीवन के अनेक रूप दिखा<
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अनेक ऊंचे पर्वतों से मिला
अडिग, आदर्श बनना सिखाती
हिमालय जैसा देशभक्ति जगा
अपने देश की
रक्षा करना सिखाती
कलकल बहती
नदियों की तरह
जीवन में आगे
बढ़ना सिखाती
जीवन को जीना
प्रकृति ही सिखाती
फिर क्यों कठोर
बन बैठा है मानव
अपने ही माता– पिता की
हत्या कर रहा है मानव
जो न रहे माता –पिता
इस जहान में
दुर्गति निश्चित है यहां पे
चुप्पी का बांध
जब टूट जाएगी
विनाशकारी रूप धारण कर
प्रकृति आएगी
जो रौद्र रूप धारण
कर ली प्रकृति ने
थाम न सकोगे ए! मानव
इसकी रौद्रता को तुम
प्रकृति है जीवन का अनमोल रत्न
इसको गँवा न बैठो तुम।