प्रहेलिका
प्रहेलिका
कौन–सा रूप
धारण कर आई है तू ?
कौन-सा राग
छेड़ आई है तू ?
कितने को उलझाई है तू ?
कितने को सुलझाई है तू ?
इतना तो बता
जीवन का सत्य
है क्या?
आवागमन का भेद
तू खोल तो सही
कल फिर कोई
लेगा जन्म
फिर कोई होगा
ईश्वर को प्यारा
फिर चमकेगा
आसमान में बन
कोई एक तारा।
इस धरती और आसमान
प्रकृति और उसके उपादानों की
गुथी हुई पहेली को
तू बता तो सही
कब तक सुलझाऊं
तेरी ये पहेली मैं
कभी तू भी खुद
सुलझा तो सही
माना लेकर आती है तू
जीवन की कई
सरल पहेली
मगर उस सरलता के
जाल में मुझे बुन
अंधकार के मार्ग में
मुझे धकेल
कहां लुप्त हो जाती है तू
ये बता तो सही।