कितना कुछ बदल गया है
कितना कुछ बदल गया है
कितना कुछ बदल गया है
एक तुम्हारे जाने के बाद
बिन चले ही पावों में
थकान भर आया है
दिल मायूस होकर
एक कोने में बैठ गया है
जिन लोगों के साथ मैं
उठता-बैठता था
हँसता-खेलता था
उन सभी को मैं छोड़ आया हूँ
मैं खुद
अपने रास्ते को मोड़ आया हूँ
दिन की रौशनी ने
मुझसे किनारा कर लिया है
रात के अँधेरे ने
मुझे ख़ामोश कर दिया है
वक़्त की बेरुखी ने मेरे
जिस्म पर अनगिनत
चोट भर दिए हैं
इन तमाम दुःखों के बोझ तले
मैं पत्थर बनकर तटस्थ खड़ा हुँ
ऐसा प्रतीत होता है मानों
मैं अपने दुःखों से
कई वर्ष बड़ा हूँ।