गांधी छप गए नोटों पर
गांधी छप गए नोटों पर
गांधी ने कहा था
सत्य अहिंसा मेरे प्राण हैं
और सचमुच हुआ भी ऐसा ही
गांधी के प्राण गए
और सत्य अहिंसा के अभियान गए
रह गए केवल नारे
इन्हीं के सहारे
मना रहे हैं प्रतिवर्ष हम
गांधी-जयंती के कार्यक्रम
पर कितना थोथा अभिक्रम
जहाँ केवल गांधी का चित्र है
यह चित्र कितना विचित्र है
गांधी छप गए नोटों पर
और नोटों के बल पर वोटों पर
सत्ता के गलियारों में, चौक में, चौबारों में
हर कदम पर भ्रष्टाचार
उसमें गांधी को ही बना दिया आधार
क्योंकि
क्योंकि गांधी छप गए नोटों पर
और नोटों के बल पर वोटों पर
झूठ और हिंसा बिक रही बाजारों में
सत्य अहिंसा ना विचारों में ना व्यवहारों में
कहीं है तो वह केवल अखबारों में
क्योंकि गांधी छप गए नोटों पर
नोटों के बल पर वोटों पर
गांधी के प्राण गए
सत्य और अहिंसा के लिए हमें प्राण थोड़े ही गंवाना है
हमें तो अपने प्राणों की रक्षा करना है
इसलिए सत्य अहिंसा रहे गए नारों में
और नारों से रोजगारों में
क्योंकि क्योंकि गांधी छप गए नोटों पर
नोटों के बल पर वोटों पर
नारे ही महान है
यह देख सभी हैरान है
गांधी ने कहा था सत्य अहिंसा मेरे प्राण हैं
पर हमें तो केवल नारों पर ही गुमान है