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Bhavna Thaker

Tragedy

4  

Bhavna Thaker

Tragedy

वक्त मेरा साथी कहाँ

वक्त मेरा साथी कहाँ

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हसरतों को चाहत खुशियों की पर नाकामी का ही साथ मिला,

वक्त मेरा साथी कहाँ,

उम्मीदों को लिखा कभी हमने तो कभी हर हर्फ़ मिटा दिया।


होते होंगे कोई वक्त के लाडले कहानियाँ जिनकी मुकम्मल हो गई 

हम तो सदा वक्त के अनमने ही रहे,

दस्तक देते थक गए वक्त की दहलीज़ बंद ही रही

दुविधाओं के ही दृग खुले, खुले ना कभी किवाड़ किस्मत के।


कैसे नापे हम ख़्वाबों के पहर रोशन कोई ना राह दिखें,

व्यथाओं की विडंबना क्या कहें चिल्लाते थक गए, 

अनसुनी करते बह गया वक्त अधूरी तमन्ना से क्या ज़िंदगी सजे।


ऊबी हुई शाम और बेचैन रातें कद कैसे ऊंचा करूँ 

वक्त के तन पर ठहराव का पैरहन नहीं फिसलना वक्त की

फ़ितरत रही, 

रोशनी की जुस्तजू में जूझते जिंद कटी तम की गर्त में सपने छंटते रहे।


गया वक्त लौटकर आता नहीं तो मलाल ना सवाल है, 

नाकामियों से हम रूबरू हुए अधूरेपन की गलियों में

अब क्या नसीब के नामों निशान ढूँढे,

वक्त की नज़र अंदाज़गी के अब तो हम आदी हो चुके।



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