गंगा
गंगा
मानव जन की जननी
पाया जन्म धन्य करती
पावन सलिल
हर मलिन स्वर्ग सुुख
पा धन्य हुआ जाता है,
कलरव करती
कलकल गुुुुनगुन करती
माँ गंगा के तट पर जब
मानव मन निश्चल आता है।।
हर हर गंगे
हर हर गंगे
शब्द यह वह जो
बार बार गूँजते दिल में
हर्षित कर मन संग
अस्तित्व मग्न कर जाता है
कलकल करती
माँ गंगा के तट जब
मानव मन निश्चल आता है।।
सफर खत्म हो जब
तब हसीन अपनी डोली
पहुँचती झूम झूूम के
तट पर माँ गंगेेे केे
जहाँ सनसनाती तुम भी होती
मिलकर जन मानते होली,
सच्ची यह सारी गाथा
छोङ जन्म जन्म का नाता
माँ गंगा तुम ले जाए
सुनाने नई जन्म की नई कथा,
तट पर हूॅूँ मााँ गंंगा
छोङ अपनी हर व्यथा।।
हरपल तेरा रंग रूप भाता है
मानव मन मेरा माता गंगा तेरी
फिर फिर मन तन
तेरे तट प रघूम आया है।।
पावन कर पतित जनों को
हरित कर सभी मनों को
तू जीवन देती माँ गंंगा
रूप तेरा हर पल भाया है
निश्चल मन तट पर तेरे
माँ मेरी माँ फिर आया है।।
