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Adyanand Jha

Romance

4.5  

Adyanand Jha

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कृष्ण - रुकमणी संवाद

कृष्ण - रुकमणी संवाद

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घूम लियो वृंदावन कान्हा,

कर आयो राधा संग रास।


और बची हो दिल में आस ,

तो कर आओ मीरा मन वास।


समय बचे मेरो मुख तक लो,

मै भी तेरी जोगन खास।


या कह दो तो विरह को वर लूं

या फिर कर लूं विष का पान।


किस कीमत को चुका के बोलो

मै पाऊ वो जगह जो ख़ास।


भाँप रुकमणी के मन का ताप,

मंद- मंद बस लीलेश्वर मुसकाय।


फ़िर बोले सुन हृदयेश्वरी,

क्यू हो तुम मुझ से नाराज।


मुरलीधर की यही विवशता

कब समझेंगे अंग ये खास।


जब मुरली पर हो तान छेड़ना,

हाथो का भी होगा काज।


छिद्रों पर ऊंगली ना फेरू

कैसे निकलेंगे मन के साज।


ज्यों अधरो से बंसी ना फूँकू

क्या सज पाएंगे राग?


पर जो हृदय योग ना ठाणे

कैसे मधुर बनेंगे राग।


सब की अपनी - अपनी सीमा,

हृदय ही करता सब पर राज,

फिर कैसे हृदयेश्वरी नाराज।


संकेतो मे उत्तर सुन कर

आत्मग्लानि से भर उठी रुकमणी।


हाय ये माया का कैसा संताप

शंका अपने प्रभु पे कर ली

जिनके हृदय पे मेरा राज।


                



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