असफलता के दिन
असफलता के दिन
हँसने की चाहत सी हैं पड़,
हँसना गुनाह सा लगता हैं।
रोने की भी सोची तो थी पड़,
आँसुओ का अभाव सा लगता हैं
ये कौन सा पल हैं जिंदगी का
सब धुंधला धुंधला सा लगता है,
चहता हूं की रंग जाऊ किसी रंग में पड़
जाने क्यूं सदा रंग का अभाव सा लगता हैं।
चाहत हैं अपनो के साथ की पड़
जानें क्यूं अपने बेगाने से लगते हैं।
ऐसा क्या हो गया हैं ईस पल,
सब अंजाने से लगते हैं।
माना असफल फिर हुआ हूं पड़
ये अस्थाई मकाम तो नही लगता हैं
हैं मंजिलें कई और भी
ये अंतिम प्रयास तो नही लगता हैं।
जानें क्यूं लोग हँसते हैं अभी
ये हँसने सी बात तो नही लगती हैं ।
शायद ना सुनने की हसरत थी उनकी
ये हां सुनने का अंदाज तो नही लगता हैं।
