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Adyanand Jha

Abstract Others

4  

Adyanand Jha

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मेरे राम

मेरे राम

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इस श्रृष्टि के आदर्श पुरुष,

तुम आए फिर आनंदित हूं।

तुम राम मेरे तुम प्राण मेरे,

मैं सत सत करूँ प्रणाम तुझे।

सत्य सदा वनवासित हो,

यह कैसा हैं विधान प्रभु।

तुम कण कण हो, तुम तृण तृण हो,

फिर कैसा ये संताप प्रभु।

इस युग का तेरा संघर्ष प्रभु,

क्या बोलूं अधर कलंकित हैं।

तुम सर्वसमर्थ तुम जगपालक,

फिर भी आश्रित मैं अचंभित हूं।

हे जगपालक हे जगतपिता ,

हम पर तुम आनंदित हो।

कब होगी कृपा ये तुम जानो,

बस रुष्ट न हो विनती इतनी।


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