तब और अब
तब और अब
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दूर कितने हो गये है कारवां से अपने,
रहगुजर कोई और थे अब, हमसफर कोई और है।
चाह कर भी लौट ना पाने की छटपटाहट,
बढ़ने भी ना देती है सुकूं से इस राह पर अब।
दूरियाँ नजदीकियों का खेल ये,
अब नहीं देती मजा है हड़बड़ाहट।
वो सुकूं अब कहाँ घर लौटने का,
पर लौटने की छटपटाहट अब तक वहीं हैं।
छोड़ देता तब कई क्लासेस जरूरी,
अब भी छोड़ा वक्त से पहले है ऑफिस।
मोर सा नाचें है मन कटवा टिकट अब,
तब तो वेटिंग भी मजा देतीं थीं बेहद।
हूँ मनाता दिल से कहता लौटेंगे हम भी,
बावरा कहता है जूठे हम बड़े हैं।
