प्रपोज
प्रपोज
तेरी मस्त आंखों की गहराइयों में
खो जाना चाहता हूं,
अरे सुनो ना कुछ कहना है
तुम मुझसे दिल लगाओगी क्या ?
सपने जो देखता था अकेले आज तक
तेरे साथ देखने को दिल चाहता है
कह दूं ये बातें मैं आज तुमसे
या बिन कहे ही समझ जाओगी क्या ?
मैं तो तुझे चाहने ही लगा हूं
ये बात कहना भी चाहता हूं
मेरी हसरतें गर ना जता पाया
बिन कहे वह भी समझ जाओगी क्या ?
मुझे सब बताने की आदत नहीं है
पर कोशिश करोगी तो जान लोगी
माना नहीं हूं मैं दरिया का तेरी
पर साथ बहने को मान जाओगी क्या ?
माना की हक है तुझे रुठने का
मनाने की आदत भी मैं सीख लूंगा
पर यदि कभी मैं रूठा जो तुमसे
मेरे नाज नखरे तुम भी उठाओगी क्या ?
शब्द ही भर पढ़ पाती हो
या मौन भी समझ लेती हो
बड़े अच्छे कॉलेज से पढ़ी हुयी हो
मेरे भी मन को पढ़ पाओगी क्या?

