मेरी अर्धांगिनी
मेरी अर्धांगिनी
तुम बिन नीरस जीवन पथ था,
इस जीवन की तुम मुस्कान प्रिये,
इस एकाकी बंजर धरती की,
बस तुम ही एक खलिहान प्रिये,
मैं तुम बिन था बस आधा आधा,
अब तुम से है सब अभिमान प्रिये,
इस जीवन रूपी धनुष में मैं गर
तीर हूँ मैं, तुम हो कमान प्रिये।।
उपमा तुमको हम क्या क्या दें,
न इतना हैं हमको ज्ञान प्रिये,
बंजारों सा था ये जीवन मेरा,
तुम लायी गृहस्थ आयाम प्रिये,
तुम अन्नपूर्णा हो इस घर की,
मैं तो बस मुट्ठी भर धान प्रिये,
तुम आधार स्तंभ अट्टालिका की,
मैं हूँ बस एक ईंट समान प्रिये।
तुम हंस दो तो सुबह उजाली है,
गर उदास तो ढलती शाम प्रिये,
जब से तुम अर्धांगिनी हो मेरी,
ये जीवन अमृत का जाम प्रिये,
मेरे अब इस जीवन के तुम ही,
सब प्रारब्ध और अंजाम प्रिये।।
क्या औऱ विधाता से मांगू मैं,
तुमसे सब कुछ है प्रदान प्रिये,
हर जन्म परिणिता तुम ही होगी,
प्रभु ऐसा बस दें वरदान प्रिये,
ऐसा बस दें वो वरदान प्रिये।।