STORYMIRROR

Ratneshwar Thakur

Abstract

3  

Ratneshwar Thakur

Abstract

दोषी कौन?

दोषी कौन?

1 min
311

कुछ खोने का अब डर नहीं,

कुछ पाने का अब मोह नहीं,

जो था अपना, और चला गया,

उसका भी मदमोह नहींं।


शायद जो खोया, वो मेरा था नहीं,

जो मेरा था वो मुझमे है,अब भी

स्वांस मेरा, स्वप्न मेरा

मेरा जिद जीने का,

सब खो कर भी, 

स्वंय खुद को पाने का।


क्षितिज पर बैठे, खींच रहा था रेखा

हस्तों के, कर पाणि में

मस्तक के त्रिपुर खंडो में,

शायद उसी का लेखा जोखा है,

ख़ामोख्वाह दोषी ठहराता हूँ।


पर मैं तो दोषी नहीं,

ये तो वो खुदा है, ईश्वर है,

जिसने लिखा दुनिया की खुदाई है,

गीता, कुरान और ग्रंथो में,

जिसकी वाणी है, और

उसी ने कहा,

बस इतना ही सच्चाई है।


उसके सिवा कोई और नहीं जग में,

वही कर्ता, कारक,

और कर्म का विधान है,

समस्या भी वही और समाधान भी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract