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Vijayta Suri

Drama

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Vijayta Suri

Drama

नई सुबह

नई सुबह

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शब्द रथ पर सवार

घनें बादलों को चीरकर।

ओढ़कर नई स्वर्णिम आभा

भोर ने दस्तक दी द्वार पर।


उठो जागो ! भुला दो

क्रोध को द्वेष को।

निचोड़ कर राग को

प्रेम रस पैदा करो।


भरो जीवन को चटख रंगों से

नए अभियान की शुरूआत हो।

दूर करो अंधकार को प्रकाश ही प्रकाश हो

हर तरफ नव जागरण की सुंदर पदचाप हो।


बनों कर्मठ परिश्रम करो

नूतन सृजन की बरसात हो।

सड़ी गली परंपराओं पर

जागरूकता का प्रहार हो।


खिल उठे भारत का भविष्य

एक नई सुबह का आगाज हो।


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