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Vijayta Suri

Others

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Vijayta Suri

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आखिरी सफर

आखिरी सफर

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अजीब मंजर था ... दोस्तों

जब प्राण हलक से निकले

हमें तब पता चला...

सारे दुश्मन तो बेहद अजीज़ निकले!


मालूम नहीं आज ऐसा ..क्या हुआ था?

जो अक्सर तंज कसा करते थे

उनका भी... रो रो कर बुरा हाल हुआ था?


बह रहा था प्यार का सागर हिलोरें मारकर

हर कोई हमें जगाने की होड़ में लगा था

दे रहे थे सब दुशालों व फूलों से श्रद्धांजलि

सिलसिलेवार हमारी नेकियों को गिनाया जा रहा था

हैरान थे हम यह देखकर दोस्तों....

बड़े अपनेपन से हमारे

हर गिले शिकवे को भुलाया जा रहा था!


बच्चों की तरह हमें पुचकारा,

सजाया व संवारा दोस्तों।

अंतिम यात्रा के लिए .....

अब सम्मान सहित

कंधों पर उठाया जा रहा था!


जिनकी मोहब्बत को तरसते रहे हम ताउम्र दोस्तों।

आज उनसे भी बेहिचक गले लगाया जा रहा था ।


तड़प उठा वैरागी मन यह दिलकश मंजर देखकर ...

हमसे अब यह मंजर न भुलाया जा रहा था!

हूक सी उठ रही थी फिर से जीने की....दोस्तों

अफसोस ! अपनों से ही चिता पर लिटाया जा रहा था।


काहे जलते हैं हम...मैं मैं की आग में रात दिन दोस्तों।

ढाई गज ज़मीन, चार गज कफन, चंद सूखी लकड़ियाँ ..

बस..... खेल ख़तम ।

हमें अब पंचतत्व में मिलाया जा रहा था

हाँ....पंचतत्व में मिलाया जा रहा था।



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