बौनी उड़ान
बौनी उड़ान
चाहत थी
खुले आसमान में
पंख लगाकर
फड़-फड़ उड़ जाऊँ।
वक़्त का पहिया
खुद ही
अपनी ओर मोड़ लाऊँ।
पर मेरी तो उड़ान ही
बौनी थी
जो चल न सकी
कुछ पल भी
वो अनछूयी
मठमैली पहेली थी।
काट दिये पर मेरे
सपनों को भी उड़ने न दिया
ज़िन्दा लाश बनाकर मुझको
कर दिया क्षतिज के हवाले।
कह दो उनसे
मरे हुए लोग
कब्र से नहीं डरा करते
क्योंकि मौत से
ज्यादा मुश्किल है।
हर पल
सांसे लेते हुए
जीते जी मरना है।
जनाज़े में अभी
वक्त था थोड़ा
कफन तैयार न था।
चलो कुछ और देर
गुफ्तगू
जिन्दगी से कर लेते है।
शायद कुछ सीखना
रह गया हो हमारा
चन्द तजुर्बा
और ले लेते है।