STORYMIRROR

Shyam Kunvar Bharti

Tragedy

3  

Shyam Kunvar Bharti

Tragedy

दहेज की सिसकियाँ

दहेज की सिसकियाँ

1 min
431

बड़े धूमधाम कर लोगे बेटी विदाई बस्तियाँ

अमीर हो, बेटी गरीब लेती दहेज सिसकियाँ


रिवाज ये कैसा बनाया समाज ने

कर दिया बरबाद बेटियाँ दहेज ने


गुण अवगुण नहीं पैसो से तौली जाती

बिना दहेज बारात दरवाजे लौटी जाती


सामाजिक बंधन जरूरी विवाह मजबूरी नही

पढ़ी लिखी बेटी देना पड़े दहेज जरूरी नहीं


गरीब जो विदाई में एक साड़ी नहीं दे सकता

देगा दहेज कहा दो वक्त रोटी नहीं ले सकता


है जिसकी बेटी दर्द वही खूब समझता है

बैठी घर कुआरी ताना समाज खूब सुनता है


भय दहेज कोख कच्ची कली ना मारो

लालच दहेज बेटी जिंदा आग ना जारो


कहने को कहते लक्षमी बेटी मगर समझते नहीं

नाम दहेज मिले कितनी मोटी रकम झपटते सभी 


शर्म लोक लाज मानवता भय दहेज जुदा तो करो

हंसी खुशी बिना दहेज बेटी मंडप विदा तो कारो।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy