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लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

Tragedy

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लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

Tragedy

फटी जेब

फटी जेब

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नित बढ़ती महँगाई से,

गरीब है कितना परेशान।

अक्सर वह मन में सोचता,

क्यूँ! प्रभु मुझे बनाया है इंसान।।


गरीब की रहती है फटी जेब,

रहता है कितना बेज़ार।

शासन सत्ता के ये रहनुमे,

फाइलों में गरीबी पर करते विचार।।


भुखमरी का शिकार हो रहा,

आज गाँव का निर्धन किसान।

सुधि न ले रही सरकार भी,

फटी जेब निर्धनता का निशान।।


युवाओं को न मिल रही नौकरी,

पढ़-लिख कर भी हैं बेरोजगार।

मजदूरी कर रहे हैं शहर में,

भुखमरी के हो रहें शिकार।।


समाज और सरकार में अब,

पूंछ हुई सिर्फ़ धनवान की।

चुनाव के समय बस! याद रहें,

नेताओं को अब किसान की।।


दिन-रात परिश्रम कर के ही,

किसान अन्न उपजाता है।

अपने मेहनत व उपज का,

न सही दाम वह पाता है।।


औने-पौने दाम में प्रायः,

अनाज बेचता है किसान।

फटी जेब हरदम रहे,

चेहरे पर झुर्रियों के निशान।।


सूखा, बाढ़ आपदा सहकर भी,

किसान फ़सल को पैदा करता।

जन्म से लेकर मृत्यु तक,

वह कर्ज से न है उबरता।।


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