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लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

Others

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लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

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'प्यार का एहसास'

'प्यार का एहसास'

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बसंत ऋतु में होने लगता,

प्यार का सुखद एहसास।

चहुँ ओर दिखती हरियाली,

मन में जगती नव आस।।


वृक्ष ढँकते नव पल्लव से,

फूल मधुर महक फैलाएं।

खेत में सरसों के पीले फूल,

आम बौरों से लद जाएं।।


प्रकृति की छँटा निराली,

प्रीत की बहती है बयार।

मन उड़ता है पतंग जैसा,

मीत मिलन को बेकरार।।


वातावरण महक उठता,

प्रेमिकाएँ करें ख़ूब श्रृंगार।

मिलने को बेताब है दिल,

आने वाली हो जैसे बहार।।


पेड़ों पर कोयलियां गाएँ,

दिल हो जाता है अधीर।

नई उमंग व जगे नई तरंग,

बस में न रहता है शरीर।



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