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लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

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लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

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'हे! माँ वीणावादिनी'

'हे! माँ वीणावादिनी'

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हे! माँ वीणावादिनी, दे दो मुझे भी वरदान,

तिमिर हटे प्रकाश फैले मुझे भी मिले ज्ञान।

बसंत पंचमी पर, कृपा कर दो माँ सरस्वती 

नित दिन करता हूँ माँ शारदे तेरा गुणगान।।


जल उठे ज्ञान दीपक, जीवन में हो उत्थान,

अवगुणों को खत्म कर माँ, हो मेरा कल्यान।

पतझड़ का हो रहा अंत, हरियाली अब होगी,

पीली सरसों की ख़ुशबू, नीला है आसमान।।


नव पल्लवित हो वृक्ष, नई शाखाएं जन्मेंगी,

प्रकृति की सौम्यता सुंदरता मन मोह लेगी।

जल, वायु, आकाश, अनिल व धरा मिलकर,

संतुलित होकर प्रकृति को सुरम्य बनाएंगी।


बसंत है ऋतुराज, इसकी होती बात सुहानी,

इस ऋतु में सब है ख़ास,शुभ हो नई कहानी।

मीठी मीठी धूप, बागों में कोयल कू कू गाती,

आमों के पेड़ पर बौर, प्रकृति में नई रवानी।।


हे! माँ वीणावादिनी, दे मुझे ज्ञान का भंडार,

मेरा कष्ट हर ले जीवन का मिटा दें अंधकार।

विद्या की देवी माँ, मेरा भी मिट जाय अहम,

कर बद्ध माँ प्रार्थना, जीवन में प्रकाश भर।







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