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Sangeeta Agarwal

Inspirational

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Sangeeta Agarwal

Inspirational

और वो हंसने लगी

और वो हंसने लगी

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गुमसुम सी रहती थी,

बहुत कम हंसती थी,

जब से ससुराल आई

वो कली मानो मुरझाई।

गूंगी ये गुड़िया है,

कागज़ की पुड़िया है।

कोई शोख ,शरूर नहीं

तमीज़ दूर दूर नहीं।

ताने सुन सुन थक गई,

माँ की सीख भूल गई।

मैं भी खिलखिलाऊंगी

सबको अब दिखाउंगी।

मेरे भी जज्बात हैं,

मेरे भी कुछ ख़्वाब हैं,

मुंह मे जुबान रखती हूं

सम्मान में चुप रहती हूं।

और वो उस दिन हंस गई,

हंस के खिलखिला दी वो,

बहुत जुबान चलाती है

दांत फाड़ हंसती है।

क्या ये सिखाया माँ ने तुझे?

इसका ताना पाया उसने,

कैसी दोगली दुनिया है

जीने नहीं देती है।

चुप रहो तो गूंगी कहे,

हंसो तो कहे वाचाल,

कैसे भी ये जीने न दें,शेर बने

शरीफ, पहने भेड़िए की खाल।

जो कुछ भी करना है,

खुद के लिए करना अब,

रोना है ,हंसना है,

जीना या मरना है।

खुद पर कर विश्वास अब

आगे कदम बढ़ाना है,

सफलता जब हाथ होगी

संग ये फिर ज़माना है।

और वो अब हंसने लगी,

काम बड़े बड़े करने लगी,

अपने दिल की सुनती है

साथ ही सब कुछ गुनती है।

कोई कुछ भी बोले तो

सुन के अनसुना करती है,

अपनी सोई शक्ति को

उसने है पहचान लिया।

जीवन एक मीठा गीत है

ये उसने बखूबी जान लिया,

गीत वो भी गाती है,

हंसती मुस्कराती है,

हंसते मुस्कराते उसने

जीवन जीना सीख लिया,

कांटो के बीच बनके गुलाब

उसने महकना सीख लिया।



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