तू चल अटल
तू चल अटल
तू चल अटल, तू चल अटल
कमजोरों का तू बन संबल
पाषाण तोड़, तू बना दे राह
कुरीतियों का, कर दे तू दाह
सदियों से बंद उम्मीदों को
करदे तू पल भर में रिहा
जो ना बदला है अभी
जतन से अपने तू दे बदल
तू चल अटल तू चल अटल
गुलामी की जंजीरें तोड़कर
बहाव नदी का मोड़कर
सोच कर अपनी तू नवल
तू चल अटल तू चल अटल
मिटा तू घनघोर तम का राज
रोशनी को फैलादे आज
नई उम्मीद पंख पसारेंगी
तू हो रहा है क्यूँ विकल
तू चल अटल तू चल अटल
परमार्थ के कार्य कर
ईर्ष्या से ना खुद को जला
क्या मिला क्या न मिला
इसका कुछ ना कर गिला
करता खुद पर विश्वास जा
भविष्य तेरा होगा उज्जवल
तू चल अटल तू चल अटल
जब तक साँस में साँस है
खुदा भी तेरे पास है
तू खुद से क्यूँ नाराज है
क्या नहीं तुझे उसका एहसास है
आज तो खुद पर विश्वास रख
नहीं मिटेगा तेरा कल
तू चल अटल तू चल अटल
चाहे चलें लाख आंधियां
चाहें चलें हजारों तूफान
चाहे सागर बहे वेग से
चाहे नदियाँ लें उफान
तुझे अपनी मंजिल पाना है
ना बन तू ऐसे अंजान
हो सके तो मायाजाल से
जा अब तू निकल
तू चल अटल तू चल अटल
गिरते गिरते सम्भलना सीखी
देख उस चींटीं का हाल
देख उस मकड़ी को
जो बुंती ही रही बिना रुके ये जाल
सारी उम्मीद टिकी है तुझ पर
तू हो नहीं बिल्कुल विफल
एक दौर भी ऐसा आएगा
हाँ मंजर भी ऐसा आएगा
जब होगा तू सच मे सफल
जब होगा तू सच मे सफल
तू चल अटल तू चल अटल
तू चल अटल तू चल अटल।
