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वैशाली सिंह

Abstract

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वैशाली सिंह

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सांवरे

सांवरे

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हो सके तो सांवरे तुम आ जाना 

माखन मिश्री का भोग लगा जाना 

तेरे दीदार को तरसे ये गोपी 

एक बार तो दरस दिखा जाना।


सुना है तुम रचाते हो रास 

तुम तो ठहरे राधा के खास 

एक बस यही तमन्ना तुम आओ तो पास 

तुम बजाओ तो बांसुरी कबसे बैठी हूँ उदास।


हर लेते दुख सबके 

कभी इसके कभी उसके 

मेरी झोली में भर दो तुम खुशियाँ 

अंधेरे जीवन मे तुम हो जलता दिया।


ये आंखें तुम्हेें निहारें हर पल 

जिंदगी का भरोसा नहीं आज नहीं कल 

इन साँसों की परवाह अब क्या करना 

तू मिल जाए फिर तो मौत से भी क्या डरना।


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