माँ की पुकार
माँ की पुकार
देखो दुनिया के रंग कई
हो गई ये माया मई
माँ की ममता का कहाँ है मोल
चीख- चीख माँ रही है बोल
जो जागा करती रातों में
खिल जाती थी मीठी सी बातों में
उंगली पकड़ चलाती थी
मुन्ने की याद सताती थी
जो चोट कहीं उसे लग जाती थी
अन्दर से सिहर वो जाती थी
जो कहीं चला वो जाता था
कुछ उसका कहीं खो जाता था
जो भूखा वो रह जाए कहीं
माँ की भूख मिट जाए वहीं
जैसे जैसे वो बड़ा हुआ
अकड़ में अपनी अड़ा हुआ.
माँ सुनने को कान तरस गए
आँसू नैनों से बरस गए
राह देखे नैना थकते थे
वो दिन लौट कहाँ सकते थे
अब बूढ़ी आंखें रोती हैं
यादें बच्चे की संजोती हैं
सहारा किसका है अब उसे
परवाह ही नहीं जो छोड़ गया उसे
