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Hasmukh Mehta

Inspirational

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Hasmukh Mehta

Inspirational

सत्य और सातत्य

सत्य और सातत्य

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यदि कोई सत्य है

और जिसका सातत्य है

वो परमकृपालु परमात्मा

जिसके साथ रखता ताल्लुक आत्मा।


तुम हो अंश

यही है जीवन का सारांश

रखो सदा अच्छा आशय

ना हो मन में कोई भी संशय।


यदि साक्षात्कार भी हो जाता है

ओर मन में बिचार पनपता है

" में ही स्वयंभू हूँ "अहंकार पलता है

उसका निराकरण प्रभु प्रत्ये आस्था है।


उसकी बराबरी का दावा करना

मतलब मूर्खता का प्रदर्शन करना

अपनी साधना का अपमान करना

और खुद को अयोग्य साबित करना।


सामान्यतः हम लालची प्राणी है

कड़वाहट और कटुताभरी वाणी है

ये सदा भविष्य वाणी रही है

सुख और सत्य में ही ख़ुशी रही है।


ऐसा अप्राप्य मनुष्यजीवन हमें प्राप्त हुआ है

हमारे जीवन का लक्ष्य समाप्त हुआ है

कैसे जीवन व्यतीत करना हमारे हाथ में है!

सुख प्राप्ति का ध्येय हमारे निर्णाधीन है।


वैसे देखो तो जीवन क्षणभंगुर है

फिर भी आदमी मगरूर और अभिमानी है

करनी उसने मनमानी है

अंत में उसकी मानहानि ही है।


तुम्हारा जीवन है अंधकारमय

यदि बना देते हो प्रभु के संग लय

आत्मा का हो जाता है विलय

मन नहीं करता दुःख यदि अभी जाए प्रलय।




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